■अब अगले बृहस्पतिवार.. , त्रिशंकु अथवा आर या पार■
उत्तराखंड गठन के बाद शायद यह पहला चुनाव है जिसमें परिणाम को लेकर इतना घना कोहरा है कि जुबानी दावा भले किये जा रहे हों, लेकिन रण क्षेत्र के बड़े महारथी यानी कि हरदा, पुष्कर धामी तक की जीत को लेकर भी स्वयं उन्ही के दल और समर्थकों में आशंका व्याप्त है।
36 के जादुई आंकड़े को लेकर न कांग्रेस का थिंक टैंक और न ही भाजपा का प्रबंधन आश्वस्त है। सियासी जुबान से दावे तो दोनों तरफ से किये जा रहे हैं लेकिन वोटों का अंकगणित का खौफ़ सबकी सांसे थामे हुए है।
भाजपा कांग्रेस से इतर भी कुछ संभावनाएं चर्चाओं में हैं, यमनोत्री, केदारनाथ, देवप्रयाग, काशीपुर, बाजपुर, टेहरी के साथ हरिद्वार की 3 से 4 सीटों के नतीजे यदि कांग्रेस-भाजपा दोनों के पक्ष में न होकर तीसरे के पक्ष में जाते हैं तो 10 मार्च के पश्चात रोचक सियासी घटनाक्रम भी तय है।
भाजपा में एक के बाद एक प्रत्याशियों द्वारा “राग भितरघाती” गाने और अब बड़े नेताओं का दिल्ली कूच का सिलसिला व आपसी भेंट वार्ताएं इस बात की तस्दीक करती हैं कि भाजपा को भान हो चुका कि बिना जोड़ तोड़ के सत्ता को बचाये रखना मुमकिन नहीं। वहीं मतदान निपटते की कांग्रेस के अतिउत्साह की बानगी इस बात से नज़र आ रही थी कि वहां सूबेदारी को लेकर हरदा और प्रीतम सिंह भ्रमण और मुलाकातों का सिलसिला शुरू कर चुके थे। लेकिन जब शने: शने: अंदरूनी हवा का रुख सामने आने लगा तो स्वयं हरदा तक ने ‘हार के लिए तैयार’ रहने वाला सांकेतिक बयान भी दे डाला। लब्बोलुआब यह कि इस मर्तबा दोनों की पार्टियों की सांसे थमी हुई हैं अब सिर्फ़ जैसे तैसे आने वाले 168 घण्टों का इंतज़ार कट जाए…
पत्रकार लेखक अजय रावत की फेसबूक वॉल से