पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लिखते है कि
सत्ता के अहंकार और जुल्म के खिलाफ विपक्ष हो या आम नागरिक हो उसके पास केवल एक हथियार है, सत्याग्रह। गाँधी जी हमको ये रास्ता दिखाकर के गये हैं। दिल्ली के दरवाजे पर हजारों किसान, अपनी जिंदगी को खतरे में डालकर, अपनी खेती व अपने जीवन को बचाने के लिये खड़े हैं। केन्द्र सरकार, उनकी मांग मानने से इनकार कर रही है, 45 किसान अपनी जिंदगी गवा चुके हैं, न जाने और कितने किसानों का बलिदान सत्ता चाहती है! उत्तराखंड से भी हमारे किसान जब आंदोलन में भाग लेने के लिये निकले, तो उन पर नाना प्रकार के अपराधों के मुकदमे दर्ज कर दिये गये हैं, बाजपुर, रूद्रपुर, गदरपुर, किच्छा, सितारगंज, खटीमा, काशीपुर, दिनेशपुर, जसपुर, हल्द्वानी, लालकुआं, कोई हिस्सा खाली नहीं है, जहां से किसान नहीं गये हों दिल्ली की ओर और उन पर मुकदमे न लगा दिये गये हों। हरिद्वार में एक मासूम बच्ची के साथ बलात्कार होता है और उसकी हत्या कर दी जाती है। आक्रोशित लोग सड़क पर निकल गये, हत्यारों को फांसी दो और सरकार उन पर भी अपराधिक धाराओं में मुकदमे लगवा रही है। ये साल बीत रहा है, इस वर्ष का कल अंतिम दिन होगा। बहुत सारी कड़वी यादें, ये वर्ष छोड़कर के गया है और कुछ विरासत में देकर के गया है। हमने व समाज ने कोरोना की महामारी से कई अपनों को खोया है और कोरोना आज भी एक साक्षात खतरे के रूप में विद्यमान है। अर्थव्यवस्था रसातल पर जाने से बेरोजगारी बढ़ी है, न जाने कितने लोग हैं जो आधे पेट खाना खाकर सो रहे हैं, एक अनिश्चय भविष्य उनके सामने है। मैंने इस वर्ष को विदा करने के लिये, यह सोचा कि मैं भी सत्याग्रह का रास्ता अपनाऊं, इसलिये 31 दिसंबर 2020 को दोपहर 12 से 1 बजे तक, 1 घंटे का ” मौन_उपवास” इस वर्ष की कटु स्मृतियों से संतप्त मन को शान्ति देने के लिये करूँगा और इस कामना के साथ अपने उपवास को खत्म करूंगा कि वर्ष 2021 देश, समाज और उत्तराखंड के लिये, किसान-मजदूर और नौजवान के लिये नई आशाओं व आकांक्षाओं का वर्ष सिद्ध हो।