ऊर्जा प्रदेश को सौर ऊर्जा से रोशन करने का सपना अधूरा, नहीं बन पाई महंगी बिजली के दर्द की दवा

ऊर्जा प्रदेश को सौर ऊर्जा से रोशन करने का सपना अधूरा, नहीं बन पाई महंगी बिजली के दर्द की दवा

प्रदेश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए एक ओर जहां यूपीसीएल के माध्यम से सोलर रूफ टॉप योजना चल रही है, जिसमें अपने घर की बिजली खपत के बराबर उत्पादन घर पर किया जा सकता है। 2019 में ये योजना बंद होने के बाद इस साल दोबारा शुरू हुई है।
प्रदेश में अपार संभावनाओं और कवायदों के बावजूद सौर ऊर्जा आज तक महंगी बिजली के दर्द की दवा नहीं बन पाई हैं। आज तक की सभी कवायदें इस ख्वाब को धरातल तक नहीं पहुंचा पाई। नतीजतन सस्ती बिजली की हसरत अधूरी है।
अब तक की कवायदों के बावजूद इतनी बिजली नहीं मिल पा रही, जिससे बाजार की खरीद से मुक्ति मिल सके। दरअसल, प्रदेश में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए एक ओर जहां यूपीसीएल के माध्यम से सोलर रूफ टॉप योजना चल रही है, जिसमें अपने घर की बिजली खपत के बराबर उत्पादन घर पर किया जा सकता है। 2019 में ये योजना बंद होने के बाद इस साल दोबारा शुरू हुई है।
त्रिवेंद्र सरकार में सौर ऊर्जा उत्पादन को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए मुख्यमंत्री सौर स्वरोजगार योजना शुरू की गई थी। इसमें करीब 900 प्रोजेक्ट के सापेक्ष महज 150 से 200 छोटे सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट ही लग पाए। वहीं, बड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाओं का भी हाल कमोबेश ऐसा ही है। पांच करोड़ तक की परियोजनाओं ने भी बीते दशक में कुछ खास उत्साह नजर नहीं आया। जो प्रोजेक्ट लगे भी, उनमें या तो समय से ग्रिड से न जुड़ने का मामला सामने आया तो कहीं उत्पादित बिजली का इस्तेमाल न करने का।

यह भी पढ़ें -  बाबा केदार के दर्शन कराने के लिए 18 साल से हेली सेवा संचालित हो रही है। लेकिन, अभी तक व्यवस्थित उड़ान के लिए कहीं भी एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावर स्थापित नहीं किया गया है। जबकि, बीते छह वर्षों में भारतीय सेना का एमआई-26 और चिनूक हेलीकॉप्टर भी यहां लैंड कर चुके हैं।

23 साल में 350 मेगावाट

राज्य की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता 20 हजार मेगावाट आंकी जा चुकी है लेकिन 23 साल में यह 350 मेगावाट से ऊपर नहीं जा पाई। ऐसे में हाइड्रो, गैस या कोयला से बिजली उत्पादन का विकल्प बनने की बात बेमानी ही नजर आ रही है।

नई सौर ऊर्जा नीति से उम्मीद

सरकार ने पिछले दिनों नई सौर ऊर्जा नीति लागू की है, जिसमें सौर प्रोजेक्ट के लिए काफी सहूलियतें प्रदान की गईं हैं। माना जा रहा है कि आने वाले पांच साल में इसका कुछ असर नजर आएगा।
सौर ऊर्जा परियोजनाओं के विफल होने का एक कारण सरकारी सुस्ती भी है। जिन लोगों ने छोटे सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाए हैं, वे या तो समय से ग्रिड से नहीं जोड़े जाते या फिर उनकी मीटरिंग समय से नहीं होती। इस वजह से लोग हतोत्साहित होते हैं।

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