Saturday, April 19News That Matters

देवभूमी उत्तराखंड के लाल शहीद चंद्रशेखर का 38 साल बाद भी बर्फ से सुरक्षित मिला पार्थिव शरीर, हाथ में बंधे ब्रेसलेट से हुई पहचान

  1. देवभूमी उत्तराखंड के लाल शहीद चंद्रशेखर का 38 साल बाद भी बर्फ से सुरक्षित मिला पार्थिव शरीर, हाथ में बंधे ब्रेसलेट से हुई प jiहचान

 


उत्तराखंड निवासी 19 कुमाऊं रेजीमेंट के लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला का पार्थिव शरीर 38 साल बाद भी सुरक्षित है। परिजनों ने बताया कि अभी तक उन्हें जो जानकारी मिली है उसके अनुसार शहीद की पार्थिव देह अब भी सुरक्षित अवस्था में है। सियाचिन में बर्फ में दबे रहने की वजह से शहीद की पार्थिव देह को नुकसान नहीं हुआ है।

शहीद चंद्रशेखर का जब शव मिला तो उनकी पहचान के लिए उनके हाथ में बंधे ब्रेसलेट का सहारा लिया गया। इसमें उनका बैच नंबर और अन्य जरूरी जानकारी दर्ज थीं। बैच नंबर से सैनिक के बारे में पूरी जानकारी मिल जाती है। इसके बाद उनके परिजनों को सूचना दी गई।

 

भारत-पाकिस्तान की झड़प के दौरान मई 1984 में सियाचिन में पेट्रोलिंग के लिए 20 सैनिकों की टुकड़ी भेजी गई थी। इसमें लांसनायक चंद्रशेखर हर्बोला भी शामिल थे। सभी सैनिक सियाचिन में ग्लेशियर टूटने की वजह से इसकी चपेट में आ गए थे। जिसके बाद किसी भी सैनिक के बचने की उम्मीद नहीं थी। भारत सरकार और सेना की ओर से सैनिकों को ढूंढने के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया गया। इसमें 15 सैनिकों के शव मिल गए थे लेकिन पांच सैनिकों का पता नहीं चल सका था।

बता दें कि सियाचिन दुनिया के दुर्गम सैन्य स्थलों में से एक है। यह बहुत ऊंचाई पर स्थित है, जहां जीवित रहना एक सामान्य मनुष्य के बस की बात नहीं है। भारत के सैनिक आज भी वहां पर अपनी ड्यूटी निभाते हैं। 1984 में देश के सैनिकों ने इस जगह को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लिया था। इस अभियान में कई सैनिकों ने अपनी शहादत दी थी।

 

यह भी पढ़ें -  उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उनके परिवार को देय अनुग्रह राशि 4 लाख रूपये से बढ़ाकर 6 लाख दी जायेगी: मुख्यमंत्री धामी

सेना से सेवानिवृत्त अधिकारियों ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के मध्य साल 1972 में हुए शिमला समझौते के बावजूद सियाचिन का मसला नहीं सुलझा था। पाकिस्तान इस क्षेत्र पर कब्जा जमाना चाहता था। इसलिए पाकिस्तान ने अपनी तरफ से पर्वतारोहियों को सियाचिन में चढ़ने की इजाजत दी थी। ताकि भविष्य में भी इस मुद्दे पर भारत से विवाद हो तो वह इस पर अपना दावा कर सके

इसके साथ ही भारत को सूचना मिली कि पाकिस्तान इस क्षेत्र को सैन्य कार्रवाई के तहत हथियाना चाहता है। इसलिए भारत ने 13 अप्रैल 1984 में ऑपरेशन मेघदूत की शुरूआत की थी। भारत को सूचना मिली थी कि पाकिस्तान 17 अप्रैल को ग्लेशियर पर कब्जा करने की योजना बना रहा है।

 

इससे पहले ही भारत ने पूरे ग्लेशियर पर कब्जा कर लिया। 1971 की जंग के बाद पाकिस्तान की ये एक और बड़ी हार थी। इस क्षेत्र की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि अगर पाकिस्तान का इस पर कब्जा हो जाता तो उसकी सीमा अस्काई चीन से मिल जाती, जो भारत के लिए बहुत बड़ा खतरा होती

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *