धामी सरकार 2:0 = सुधार की ओर उत्तराखंड की आर्थिक अर्थव्यवस्था, विकास दर बढ़ी ओर 6.13 फीसदी का अनुमान

धामी सरकार 2:0 = सुधार की ओर उत्तराखंड की आर्थिक अर्थव्यवस्था, विकास दर बढ़ी ओर 6.13 फीसदी का अनुमान

 

 

 

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था कोरोनाकाल के दुष्चक्र से बाहर निकल चुकी है। शुक्रवार को विधानसभा के पटल पर रखी गई राज्य सरकार की आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 की रिपोर्ट से यह खुलासा हो रहा है। रिपोर्ट के आंकड़े बता रहे हैं कि राज्य की अर्थव्यवस्था पटरी पर और तेजी से सुधार की ओर है।

 

रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 में कोविड के सबसे बुरे दौर में राज्य की आर्थिक विकास दर शून्य से नीचे -4.42 फीसदी गिर चुकी थी, 2021-22 में वह न सिर्फ धनात्मक हुई, बल्कि अब उसके 6.13 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की संभावित विकास दर 9.2 प्रतिशत से कम है।

 

प्रचलित भाव पर सकल राज्य घरेलू उत्पाद में पिछले वर्ष से 8.17 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। जबकि स्थिर भाव पर 6.13 प्रतिशत वृद्धि होने का अंदाजा है। राज्य गठन के बाद से पहली बार किसी वर्ष (2020-21) में सकल राज्य घरेलू उत्पाद में गिरावट दिखी है। 2020-21 में प्रचलित भाव पर यह 234660 करोड़ था, जिसके 2021-22 में बढ़कर 253832 करोड़ होने का अनुमान है।
विनिर्माण, निर्माण, व्यापार का अहम योगदान
अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में द्वितीय क्षेत्र (44.98 प्रतिशत) और तृतीय क्षेत्र (42.92 प्रतिशत) का सबसे अधिक योगदान है। यानी आर्थिकी में विनिर्माण और निर्माण, व्यापार, होटल एवं जलपान गृह, परिवहन, भंडारण, संचार एवं प्रसारण क्षेत्र की अहम भूमिका है। प्राथमिक क्षेत्र कृषि, पशुपालन, मत्स्य खनन का कुल मिलाकर योगदान सबसे कम 12.11 प्रतिशत का है।

प्रतिव्यक्ति आय में पहली बार हिमाचल से पीछे
रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की प्रतिव्यक्ति आय में बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन तुलनात्मक दृष्टि से हम हिमाचल से पिछले दो साल से पिछड़ रहे हैं। राज्य निवल घरेलू उत्पाद के आधार पर वर्ष 2021-22 के अग्रिम अनुमानों में प्रचलित भावों पर राज्य की प्रतिव्यक्ति आय 1,96,282 रुपये अनुमानित है, यह बेशक राष्ट्रीय प्रतिव्यक्ति आय 1,50,326 रुपये से अधिक है, लेकिन हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय 2,01864 रुपये से कम है। कोरोनाकाल में ही प्रतिव्यक्ति आय में हिमाचल आगे था। 2020-21 में अनंतिम अनुमान के अनुसार, राज्य की प्रतिव्यक्ति आय 182698 रुपये दर्शाई गई, जबकि हिमाचल की 183333 रुपये।
स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना होगा
रिपोर्ट में राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च को बढ़ाने की आवश्यकता जताई गई है। पिछले तीन वर्षों में सरकार ने शिक्षा पर सबसे अधिक और स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च किया। रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 व 20-21 में शिक्षा पर 32 तथा 30 प्रतिशत खर्च हुआ, जबकि चिकित्सा व स्वास्थ्य पर छह फीसदी ही खर्च हो पाया। 2021-22 में भी स्वास्थ्य पर सात फीसदी के ही खर्च का अनुमान है।
अल्मोड़ा में सबसे अधिक गरीबी
आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार बहुआयामी गरीबी के मामले में उत्तराखंड देश में 15वें स्थान पर है। राज्य के अल्मोड़ा जिले में सबसे अधिक 25.65 प्रतिशत गरीबी है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा निर्धनता हरिद्वार जिले में 29.55 प्रतिशत है। नगरीय क्षेत्र में सबसे अधिक गरीबी चंपावत जिले की 20.90 प्रतिशत है।
महंगाई में देश में आठवें स्थान पर

 

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रिपोर्ट में केंद्रीय सांख्यिकी व कार्यक्रम कार्यान्वय मंत्रालय के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड में जनवरी 2022 से मार्च 2022 की तिमाही में महंगाई 5.83 प्रतिशत बढ़कर 6.38 प्रतिशत हो चुकी है। देश में उत्तराखंड का आठवां स्थान है। हरियाणा में सबसे अधिक महंगाई है।
20 वर्षों में 20 गुना निवेश, आठ गुना रोजगार
रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य गठन के समय 14163 औद्योगिक इकाइयां थीं, जो वर्ष 2021-22 में बढ़कर 73961 हो गईं। राज्य गठन के बाद 20 वर्षों में उद्योगों में पांच गुना से अधिक की वृद्धि हुई। 20 गुना निवेश बढ़ा और रोजगार में आठ गुना की वृद्धि हुई। 2022 तक राज्य में सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योगों में 382431 और बड़े उद्योगों में 111451 लोगों को रोजगार मिला।
3.53 लाख से अधिक रोजगार का प्रस्ताव
उद्योगों के लिए 601 एमओयू हो चुके हैं, जिनमें 124366 करोड़ का निवेश होना है और 353924 लोगों को रोजगार की संभावना है। इसमें से 7180 इकाइयों को मंजूरी मिल चुकी है, जिनमें 39477 करोड़ का निवेशक होगा और 176561 लोगों को रोजगार मिलेगा।
लोन देने से बच रहे बैंक, महज 47 फीसदी है ऋण-जमा अनुपात
भले ही केंद्र व राज्य सरकार तमाम ऐसी स्वरोजगार की योजनाएं चला रही हों, जिनमें बैंक से लोन की जरूरत होती है, लेकिन उत्तराखंड के बैंक लोन देने में आनाकानी कर रहे हैं। इस वजह से प्रदेश में ऋण-जमा अनुपात महज 47 फीसदी है, जबकि आरबीआई के मानकों के हिसाब से यह 60 फीसदी होना ही चाहिए। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, प्रदेश में ऊधमसिंह नगर का ऋण-जमा अनुपात सबसे अधिक 103 प्रतिशत, चमोली का 70 प्रतिशत, हरिद्वार का 66 प्रतिशत है, जबकि पौड़ी, अल्मोड़ा और बागेश्वर का 26-26 प्रतिशत है। देहरादून का 35 प्रतिशत, उत्तरकाशी का 52 प्रतिशत, टिहरी का 32 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग का 28 प्रतिशत, पिथौरागढ़ का 45 प्रतिशत, चंपावत का 34 प्रतिशत, नैनीताल का 41 प्रतिशत है। कुमाऊं मंडल के छह जिलों का ऋण-जमा अनुपात आरबीआई के 60 फीसदी के मानक के करीब 58 फीसदी है, जबकि गढ़वाल मंडल के सात जिलों का ऋण-जमा अनुपात महज 42 फीसदी है।

हर ब्लॉक में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन करेगी सरकार
उत्तराखंड में प्लास्टिक के कचरे के प्रबंधन की दिशा में बड़ी शुरुआत होने जा रही है। पेयजल विभाग प्रदेश के सभी 95 ब्लॉक में पंचायती राज विभाग के समन्वय से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन इकाई स्थापित करने जा रहा है।
आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में 95 ब्लॉक में से 81 ब्लॉक चिह्नित किए जा चुके हैं जबकि चार में स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के तहत शेड निर्माण पूरा हो चुका है। दो ब्लॉक में काम शुरू हो चुका है। इन सभी ब्लॉक में पंचायती राज विभाग के माध्यम से कॉम्पैक्टर लगाए जाएंगे, जिससे प्लास्टिक कचरे की ईंट या अन्य सामग्री बनाई जा सकेगी। आधा बजट ही खर्च कर पाया पेयजल विभाग सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-22 में पेयजल विभाग के लिए 2374.16 करोड़ का बजट स्वीकृत किया, जिसमें से 2252.05 करोड़ रुपये जारी हुए। इसमें से 1224.29 करोड़ ही खर्च हुआ।

 

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प्रदेश में जल विद्युत परियोजनाओं से पूरी होंगी ऊर्जा जरूरतें
प्रदेश में बिजली की किल्लत के बीच नई लघु और बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं शुरू होने जा रही हैं। इनमें से कई परियोजनाओं का काम शुरू हो चुका है और कई का काम भविष्य में शुरू होगा। आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह बात सामने आई हैं।
गढ़वाल मंडल में परियोजनाएं
भिलंगना द्वितीय 24 मेगावाट का निर्माण जल्द ही शुरू होगा। आराकोट-त्यूनी 81 मेगावाट और त्यूनी-प्लासू 72 मेगावाट के निर्माण कार्यों की प्रक्रिया भी चल रही है।
कुमाऊं मंडल में परियोजनाएं
12 मेगावाट की तांकुल, 15 मेगावाट की पेनागाड़, 12 मेगावाट की जिम्मागाड़, चार मेगावाट की कंचोटी और 1.2 मेगावाट की कुलागाड़ लघु जल विद्युत परियोजना के निर्माण की प्रक्रिया गतिमान है। 120 मेगावाट की सिरकारीभ्योल, रूपसियाबगड़ और 202 मेगावाट की सेलाउर्थिंग जल विद्युत परियोजनाओं का अनुसंधान और नियोजन चल रहा है।
ये परियोजनाएं भी प्रस्तावित
4.5 मेगावाट की कालीगंगा-2, पांच मेगावाट की सुरनिगाड़-2, 15 मेगावाट की मद्महेश्वर, 24 मेगावाट की भिलंगना-2 ए, 12 मेगावाट की टंकुल, 24 मेगावाट की भिलंगना-2 बी, 15 मेगावाट की पैनागाड़, 12 मेगावाट की जिम्बागाड़, 1.5 मेगावाट की गुप्तकाशी, 0.8 मेगावाट की पुरकुल, दो मेगावाट की सुवारीगाड़, चार मेगावाट की कंचौटी एसएचपी, 1.2 मेगावाट की कुलागाड़, पांच मेगावाट की तपोवन।

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