क्या ऐसा होता है : मरीज़ ने उत्तरकाशी से दून फिर चंडीगढ़ तक काटे अस्पतालों के चक्कर, पर नहीं मिला इलाज, फिर वो दुनिया छोड़ चल दिया दिया

क्या ऐसा होता है : मरीज़ ने उत्तरकाशी से दून फिर चंडीगढ़ तक काटे अस्पतालों के चक्कर, पर नहीं मिला इलाज, फिर वो दुनिया छोड़ चल दिया दिया

 

 

 

देवभूमि उत्तराखंड में पहाड़ की बदहाल स्वास्थ्य सेवा के से कोई अनजान नही ,ना आप ना हम ओर ना सरकार आये दिन लोगो को जान चली जाती है
जो एक ओर व्यक्ति के लिये जानलेवा साबित हुई।
जानकारी अनुसार
यह घटना बीते शुक्रवार की है। बिहार के लौरिया गांव निवासी कमलेश शर्मा (38) ज्ञानसू की दुकान में कारपेंटर का काम करता था। ओर शुक्रवार को दिन में लहभग साढ़े बारह बजे वह अचानक बेहोश हो गया। आसपास के लोग उसे तत्काल जिला अस्पताल ले गए। यहां उसका इलाज नहीं हो पाया और उसे फिर दून अस्पताल रेफर कर दिया गया। लेकिन उत्तरकाशी से ब्रेन हैमरेज से पीड़ित व्यक्ति को जिला अस्पताल से दून अस्पताल तक पहुंचने के लिए तीन बार एंबुलेंस बदलनी पड़ी।
फिर किसी तरह वह दून अस्पताल पहुंचा तो वहां से उसे वापस ऋषिकेश एम्स रेफर कर दिया गया। लेकिन, वहां भी उसका इलाज नहीं हो पाया। बाद में उसे चंडीगढ़ ले जाया गया और इसी बीच उसकी मौत हो गई।

बता दे कि मरीज को पहले चिन्यालीसौड़, फिर अलमस और मसूरी के पास तीन बार एंबुलेंस बदलनी पड़ी। ऐसे में उसे रात नौ बजे दून अस्पताल पहुंचाया जा सका। लेकिन, यहां से उसे वापस एम्स ऋषिकेश रेफर किया गया। रात करीब साढ़े दस बजे पीड़ित को ऋषिकेश एम्स पहुंचाया गया।
मुद्दे की बात है है कि एक अस्पताल से दूसरे या हायर सेंटर रेफर होने वाले मरीज के लिए सरकारी अस्पतालों के बीच समन्वय होना जरूरी है। लेकिन ज्यादातर सरकारी अस्पताल मरीज को रेफर करने से पहले हायर सेंटर में मरीज के लिए जरूरी संसाधनों का पता नहीं करते।
जिसके चलते रेफर होकर जाने वाले मरीज और परिजनों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सीएमएस डा.एसडी सकलानी का कहना है कि जब किसी मरीज के परिजन मांग करते हैं तो हायर सेंटर में मरीज के लिए आवश्यक इलाज के बारे में पता किया जाता है। 
वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं होने पर एम्स प्रबंधन ने भी उसे भर्ती करने से इनकार कर दिया। बाद में परिचित उसे चड़ीगढ़ ले गए, लेकिन अस्पताल पहुंचने पर उसने दम तोड़ दिया। कमलेश के साथ गए दुकान स्वामी अशोक शर्मा का कहना है कि कमलेश को समय पर इलाज मिल जाता तो उसकी जान बचाई जा सकती थी। 
मेरे पास एंबुलेंस के लिए कोई नहीं आया। वे फ्री के चक्कर में 108 एंबुलेंस सेवा से गए होंगे। लंबे रास्ते पर तीन जगह एंबुलेंस बदल जाना तो 108 सेवा का नियम है। लेकिन कोई मांग करता है तो 108 सेवा भी गंभीर मरीज को सीधे हायर सेंटर लेकर जाती है। ये कहना था -डा. एसडी सकलानी, मुख्य चिकित्सा अधीक्षक उत्तरकाशी
बहराल ये कोई पहली घटना नहीं है आये दिन गर्भवती महिलाओं को, बुजर्ग को , सड़क हादसे में घायल हुए लोगो के साथ इस प्रकार दुःखद घटना को सुना जाता है ये सही बात है कि पहाड़ में स्वास्थ्य व्यवस्था अभी तक पटरी पर नही उतरी है पर जितनी भी व्यवस्था पहाड़ से देहरादून तक है यदि आपसी समन्वय मरीज के परिजन से लेकर।अस्प्ताल तक बनाया जाए तो काफी दुःखद हादसों पर विराम लग सकता है।

यह भी पढ़ें -  मुख्यमंत्री ने कहा कि इतनी कम आयु में बजरंग बली ने महाराज जी पर कृपा की यह किसी दैवीय चमत्कार से कम नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here