देहरादूनः प्रदेश की त्रिवेंद्र सरकार को लेकर विरोधी चाहे कितना ही कुछ क्यों न कह लें। लेकिन यह बात तो तय है कि पिछली सरकारों के कार्यकाल में मजबूत हुए भ्रष्टतंत्र को त्रिवेंद्र सरकार के मजबूत इरादे ही तोड़ पाए। कांग्रेस सरकार के समय हुए करोड़ों के एनएच घोटाले पर उच्च अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई कर उन्होंने शुरूआत में ही एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय, की नीति अपनाई। और भीतर तक जड़ें जमा चुके भ्रष्टतंत्र की चूलें हिल गई।
गौरतलब है कि प्रदेश में वर्ष 2012 के दरमियान तात्कालीन कांग्रेस सरकार में एनएच 74 के चौड़ीकरण में अधिग्रहण होने वाली भूमि के मुआवजा आवंटन में करीब 300 करोड़ का घपला सामने आया था। तात्कालीन आयुक्त डी सैंथिल पांडियन ने इसकी जांच कर मामले को पुख्ता कर दिया था। लेकिन सत्ता की चुंधियाती रोशनाई में उस मामले पर तब कार्रवाई नहीं हो सकी। जबकि कई सामाजिक संगठनों की ओर से भी इस मामल पर कार्रवाई की मांग उठती रही। सूचनाएं तो यह भी आई कि तात्कालीन कांग्रेस सरकार तो करोड़ों के इस खेल को पूरी तरह से रफा दफा करने का इंतजाम कर चुकी थी। लेकिन त्रिवेंद्र सरकार ने वर्ष 2017 में सत्ता संभालते ही इस मामले में एक्शन लिया। और पहली बार किसी भ्रष्टाचार के मामले में दो आईएएस अधिकारियों को निलंबित किया गया। जांच की आंच में आए आईएएस में चंद्रेश यादव और पंकज पांडे शामिल थे। इसके अलावा इस मामले में आठ आईपीएस पर भी गाज गिरी। 22 अधिकारी कर्मचारी सरकार की सख्ती के कारण सलाखों के पीछे भेजे गए।
देखा जाए तो सीएम त्रिवेंद्र का यह पहला स्ट्रोक ही भ्रष्टचार की जड़े उखाड़ने का मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ। अक्सर देखा गया है कि किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में बड़ी मछलियां बचती रही हैं। छोटे अधिकारी कर्मचारियों पर गाज गिरने के बाद जांच की इतिश्री करने के यहां कई मामले मिल जायेंगे। लेकिन जीरो टालरेंस की बात करने वाले त्रिवेंद्र रावत के राज में छोटी मछलियां तो पकड़ी ही गई बड़ी मछलियां भी जांच की आंच से नहीं बच पाई। जानकार मानते हैं कि उच्च अधिकारियों पर कार्रवाई से साफ हो गया है कि अब भ्रष्टाचार करने पर रसूख वाले या उंची कुर्सी वाले भी नहीं बच पाएंगे। और मंशा रखने वाले भी सौ बार सोचेंगे। सीएम त्रिवेंद्र ने एक साधै सब सधै की जो नीति अपनाई है, और यही मास्टर स्ट्रोक सूबे में भ्रष्टाचारमुक्त माहौल बनाने में कारगर हुआ है।