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क्या धामी-भट्ट के भरोसे भाजपा हर दा को कुमाऊ में ही रोकने पर हो पायेगी कामयाब , या भाजपा अबकी बार सिर्फ 25 पार


उत्तराखंड में 9 मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत का इस्तीफ़ा
10 मार्च को बीजेपी नेतृत्व ने उसी पौड़ी जिले से तीरथ सिंह रावत का फिर मुख्यमंत्री बनना

ओर फिर महज 115 दिन बाद
4 जुलाई को तीसरा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को बनाना
उत्तराखंड को देना ( महज साढ़े 4 साल के कार्यकाल के दौरान 3 मुख्यमंत्री )

अजय भट को केंद्रीय राज्य मंत्री बनाना

मतलब साफ है अबकी बार हरीश रावत की घेराबंदी कुमाऊँ में ही करने की रणनीति भाजपा ने तय कर ली है
अजय भट्ट को मंत्री बनाना बता रहा है कि बीजेपी ने उत्तराखंड में 2022 बैटल को लेकर नए सिरे से बिसात बिछा डाली है।
इसके साथ ही पीछे चार साल से उपेक्षा झेल रहे कुमाऊं को साध लेने का मक़सद तो है ही, साथ ही गढ़वाल में अपने खांटी और कांग्रेस गोत्र के हल्ला मचाते नेताओं को जमीन दिखाने की कोशिश भी नजर आती है।
युवा पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी नेतृत्व ने महाराज और हरक सिंह रावत जैसे कांग्रेसी गोत्र के दिग्गज बीजेपी नेताओं को अवगत कराया है कि दरअसल, 2014 से लेकर 18 मार्च 2016 के जो भी सियासी कमिटमेंट थे उनकी मियाद एक्सपायर कर चुकी है। खास तौर पर अब उन हिलोरे मारते सपनों को समझाइश देनी होगी जो, महाराज को रात-दिन उम्मीद दिए रहे कि बस अबके मुख्यमंत्री बनने की बारी आ ही गई। धामी के चुनाव के ज़रिए पार्टी ने संदेश दे दिया है कि ऐसे तमाम नेता बीजेपी में अपना अधिकतम हासिल कर चुके हैं।
दरअसल बीजेपी ब्रांड मोदी के ढलान से पहले केन्द्र-राज्यों में नए नेतृत्व की पौध तैयार करने का जोखिम उठा सकती है और फेरबदल के बाद जवां होता केन्द्रीय मंत्रिमंडल और राज्यों के युवा मुख्यमंत्रियों की बढ़ती तादाद बताती है कि पार्टी अपनी सियासी किताब के कुछ पन्ने पलट चुकी है और यहां से पीछे लौटने की गुंजाइश बहुत कम है। प्रदेश में धामी के बहाने नाराजगी दिखाकर एक-एक मलाईदार विभाग पा गए मंत्री महाराज और हरक से लेकर दूसरे दिग्गज टीस छिपाकर इसे अपनी जीत करार जरूर दे सकते हैं लेकिन बदलती बीजेपी में भविष्य की सियासी तस्वीर उन्हें भी दिखाई दे रही है। लिहाज़ा यदि फिर दलबदल भविष्य में हो गया तो चौकने वाली बात नही होगी

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